Viraam Chinha (Punctuation) (विराम चिन्ह)

विराम चिन्ह 

भाषा में स्थान -विशेष पर रुकने अथवा उतार -चढ़ाव आदि दिखाने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है उन्हें ही  ‘ विराम चिन्ह ‘ कहते है !                

               


1. पूर्ण विराम :-  ( )
                             
 – प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है !
 
2. उपविराम :-   ( : )
 
 – उपविराम का प्रयोग संवाद -लेखन एकांकी लेखन या नाटक लेखन में वक्ता के नाम के बाद किया जाता है !   
 
3. अर्ध विराम :-  ( ; )
 
  – इसमें उपविराम से भी कम ठहराव होता है ! यदि खंडवाक्य का आरंभ वरन, पर , परन्तु , किन्तु , क्योंकि इसलिए , तो भी आदि शब्दों से हो तो उसके पहले इसका प्रयोग करना चाहिए ! 
 
4. अल्प विराम :-  ( , )
 
  – इसमें बहुत कम ठहराव होता है !
 
5. प्रश्नबोधक :-  ( ? )    
 
6. विस्मयादिबोधक :-  ( ! )
 
 – विस्मय , हर्ष , शोक , घृणा , प्रेम आदि भावों को प्रकट करने वाले शब्दों के आगे इसका प्रयोग होता है !
 
7. निर्देशक चिन्ह :-   ( _ )
 
8. योजक चिन्ह :-     ( )
 
 – द्वन्द्व समास के दो पदों के बीच , सहचर शब्दों के बीच प्रयोग !
 
9. कोष्ठक चिन्ह :-   ( )
 
10. उदधरण चिन्ह :-  (  ” “  )
 
11. लाघव चिन्ह :-  ( o )
 
12. विवरण चिन्ह :-  (  :- )

Loading

Vaachya (Voice) (वाच्य)

वाच्य :- क्रिया के जिस रूपांतर से यह बोध हो कि क्रिया द्वारा किए गए विधान का केंद्र बिंदु कर्ता है , कर्म अथवा क्रिया -भाव , उसे वाच्य कहते हैं !

वाच्य के तीन भेद हैं – 

 
1- कर्तृवाच्य –  जिसमें कर्ता प्रधान हो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं !
 
    कर्तृवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्ता के समान होते हैं , जैसे – सीता गाना गाती है , इस वाच्य में सकर्मक और अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है !
     कभी -कभी कर्ता के साथ  ‘ ने ‘  चिन्ह नहीं लगाया जाता !
 
2-  कर्मवाच्य –  जिस वाक्य में कर्म प्रधान होता है , उसे कर्मवाच्य कहते हैं !
    कर्मवाच्य में क्रिया के लिंग , वचन आदि कर्म के अनुसार होते हैं , जैसे – रमेश से पुस्तक लिखी जाती है ! इसमें केवल  ‘ सकर्मक ‘ क्रियाओं का प्रयोग होता है !
 
3-  भाववाच्य –  जिस वाक्य में भाव प्रधान होता है , उसे भाववाच्य कहते हैं !
     भाववाच्य में क्रिया की प्रधानता रहती है , इसमें क्रिया सदा एक वचन , पुल्लिंग और अन्य पुरुष में आती है ! इसका प्रयोग प्राय: निषेधार्थ में होता है , 
     जैसे – चला नहीं जाता , पीया नहीं जाता !
 
–  कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना :-
 
 
          ( कर्तृवाच्य )                             ( कर्मवाच्य )
 
1-   रीमा चित्र बनाती है !               –  रीमा द्वारा चित्र बनाया जाता है !
 
2-   मैंने पत्र लिखा !                     –  मुझसे पत्र लिखा गया !
–  कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना :-
 
          ( कर्तृवाच्य )                             ( भाववाच्य )
 
1-   मैं नहीं पढ़ता !                      –   मुझसे पढ़ा नहीं जाता !
 
2-   राम नहीं रोता है !                  –   राम से रोया नहीं जाता !

Loading

Ling (Gender) (लिंग)

लिंग :- संज्ञा के जिस रूप से किसी जाति  का बोध होता है ,उसे लिंग कहते हैं !
इसके दो भेद होते हैं :-


1-  पुल्लिंग :-  जिस संज्ञा शब्दों से पुरुष जाति का बोध होता है , उसे पुल्लिंग कहते हैं –  जैसे – बेटा , राजा  आदि !
2-  स्त्रीलिंग :-  जिन संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का  बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं –  जैसे –  बेटी , रानी आदि !
स्त्रीलिंग प्रत्यय –
पुल्लिंग शब्द को स्त्रीलिंग बनाने के लिए कुछ प्रत्ययों को शब्द में जोड़ा जाता है जिन्हें स्त्री प्रत्यय कहते हैं ! जैसे – 
1.   =   बड़ा – बड़ी , भला – भली 
 
2.  इनी =  योगी – योगिनी , कमल – कमलिनी 
 
3.  इन =   धोबी – धोबिन , तेली – तेलिन 
 
4.  नी =   मोर – मोरनी , चोर – चोरनी 
 
5.  आनी =  जेठ – जेठानी , देवर – देवरानी 
 
6.  आइन =   ठाकुर – ठकुराइन , पंडित – पंडिताइन 
 
7.  इया =   बेटा – बिटिया , लोटा – लुटिया 
 

कुछ शब्द अर्थ की द्रष्टि से समान होते हुए भी लिंग की द्रष्टि से भिन्न होते हैं ! उनका उचित प्रयोग करना चाहिए !जैसे –               

      पुल्लिंग                        स्त्रीलिंग 
                     
1.   कवि                            कवयित्री 
 
2.   विद्वान                          विदुषी 
 
3.   नेता                             नेत्री 
 
4.   महान                           महती 
 
5.   साधु                             साध्वी 
 
(  ऊपर दिए गए  शब्दों का सही प्रयोग करने पर ही शुद्ध वाक्य बनता है !  )
 
जैसे :-   1-  वह एक विद्वान लेखिका है –   (  अशुद्ध वाक्य  )
                 
                 वह एक विदुषी लेखिका है –   (   शुद्ध वाक्य    )

Loading

Vachan (Singular-Plural) (वचन)

वचन:- संज्ञा अथवा अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप में संख्या का  बोध हो , उसे वचन कहते हैं !

वचन के दो भेद होते हैं – 
1-  एकवचन :-  संज्ञा के जिस रूप से एक ही वस्तु , पदार्थ या प्राणी का बोध होता है , उसे एकवचन कहते हैं !
     जैसे –  लड़की , बेटी , घोड़ा , नदी आदि !

2-  बहुवचन :-  संज्ञा के जिस रूप से एक से अधिक वस्तुओं , पदार्थों या प्राणियों का बोध होता है , उसे बहुवचन कहते हैं !

     जैसे –  लड़कियाँ , बेटियाँ , घोड़े  , नदियाँ  आदि !

–  एकवचन से  बहुवचन बनाने के नियम इस प्रकार हैं –

1-   को एं कर देने से =    रात = रातें 
 
2-  अनुस्वारी  ( . ) लगाने से =    डिबिया =  डिबियां 
 
3-  यां जोड़ देने से =    रीति =  रीतियां 
 
4-  एं लगाने से =   माला =  मालाएं 
 
5-    को कर देने से =   बेटा =  बेटे 

Loading

Kriya (Verb) (क्रिया)

क्रिया :- जिस शब्द से किसी कार्य का होना या करना समझा जाय , उसे क्रिया कहते हैं ! जैसे – खाना , पीना  , सोना , रहना , जाना आदि !


क्रिया के दो भेद हैं :- 
1- सकर्मक क्रिया :-  जो क्रिया कर्म के साथ आती है , उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं !
    जैसे – मोहन फल खाता है ! ( खाना क्रिया के साथ कर्म फल है  )
 2- अकर्मक क्रिया :-  अकर्मक क्रिया के साथ कर्म नहीं होता तथा उसका फल कर्ता पर पड़ता है !
     जैसे – राधा रोती है ! ( कर्म का अभाव है तथा रोती है क्रिया का फल राधा पर पड़ता है  )
–  रचना के आधार पर क्रिया के पाँच भेद है :-
1- सामान्य क्रिया :-वाक्य में केवल एक क्रिया का प्रयोग ! जैसे –  तुम चलो , मोहन पढ़ा  आदि !
2- संयुक्त क्रिया :-  दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनी क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ होती है ! जैसे – गीता स्कूल चली गई आदि !

3- नामधातु क्रियाएँ :-  क्रिया को छोड़कर दुसरे शब्दों  ( संज्ञा , सर्वनाम , एवं  विशेषण  ) से जो धातु बनते है , उन्हें नामधातु क्रिया कहते है जैसे –  अपना – अपनाना , गरम – गरमाना  आदि !

4- प्रेरणार्थक क्रिया :-  कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को करने की प्रेरणा देता है  जैसे – लिखवाया , पिलवाती आदि !
5- पूर्वकालिक क्रिया :-  जब कोई कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया  ‘ पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है जैसे –  वे पढ़कर चले गये  ,  मैं नहाकर जाउँगा  आदि !

Loading

Visheshan (Adjectives) (विशेषण)

विशेषण : जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है उसे विशेषण कहते हैं। 

 
जैसे: मोटा आदमी, नीला आसमान आदि। 

विशेषण के चार भेद होते हैं: 

 
1. गुणवाचक विशेषण : जो शब्द किसी व्यक्ति या वस्तु  के गुण, दोष, रंग, आकार, अवस्था, स्तिथि, स्वभाव, दशा, दिशा, स्पर्श, गंध, स्वाद आदि का बोध कराये, गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं, जैसे काला, गोरा, अच्छा, सुंदर, ख़राब, गीला , रोगी, छोटा, कठोर, कोमल , खट्टा, नमकीन, बिहारी, सुगन्धित आदि। 
 
2. परिमाणवाचक विशेषण: वह विशेषण जो अपने विशेष्यों की निश्चित या अनिश्चित मात्रा का बोध कराए। 
     इसके दो भेद होते हैं 
     1. निश्चित परिमाणवाचक विशेषण:- जहाँ नाप, तोल या माप निश्चित हो, जैसे एक किलो चीनी, दो मीटर कपडा। 
     2. अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण: :- जहाँ नाप, तोल या माप अनिश्चित हो जैसे थोड़ी चीनी, कुछ लकड़ी। 
3. संख्यावाचक विशेषण :- संख्या संबंधी विशेषता बताने वाले शब्दों को संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
     ये दो प्रकार के होते हैं:
     1. निश्चित संख्यावाचक विशेषण: जहाँ संख्या निश्चित हो, जैसे पांच लड़के, दो छात्र। 
     2. अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण: जहाँ संख्या अनिश्चित हो जैसे सैंकड़ों लोग, अनेक लडकियां।
4. सार्वनामिक विशेषण :- वे सर्वनाम शब्द जो संज्ञा शब्द से पहले आकर उसकी विशेषता बताते हैं, सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं, जैसे 
     कौन लोग आये हैं ?

Loading

Kaarak (Prepositions) (कारक)

कारक 

 
जो किसी शब्द का क्रिया के  साथ सम्बन्ध बताए  वह कारक है !
 


कारक के आठ भेद हैं :-

 
जिनका विवरण इस  प्रकार है :-
 
 कारक                                                             कारक चिन्ह 
 
1. कर्ता                                                              ने 
 
2. कर्म                                                               को 
 
3. करण                                                             से , के द्वारा 
 
4. सम्प्रदान                                                        को , के लिए 
 
5. अपादान                                                         से (अलग करना )  
 
6. सम्बन्ध                                                         का , की , के 
 
7. अधिकरण                                                      में , पर 
 
8. सम्बोधन                                                        हे , अरे                                                                                               
नीचे कारकों के कुछ उदाहरण दिए गए हैं :

कर्ता :
राजेश ने पानी पिया। 
सीता ने गाना गाया। 

कर्म :
पिता ने बच्चे को गोद में उठा लिया। 
रमेश ने सुरेश को हरा दिया। 

करण :
वह ठण्ड से कांप रहा था
सीता कलम से लिखती है

सम्प्रदान :
यह पुस्तक गीता को दे दो
उसने देश के लिए जान  दे दी

अपादान :
पत्ते पेड़ से टूट कर गिरते हैं
वह धीरे धीरे सब से दूर हो गया

सम्बन्ध :

मैं आज हरीश की माता से मिला
श्याम का आत्मविश्वास बढ़ता ही गया

अधिकरण :
वहां कमरे में कोई नहीं था
यह दूध वहां मेज़ पर रख दो

सम्बोधन :
हे अर्जुन ! तुम्हें यह लड़ाई लड़नी ही होगी
अरे ! ये तो वही है जिसे तुम खोज रहे थे

Loading

Sarvnaam (Pronoun) (सर्वनाम)

सर्वनाम  

संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किये जाने वाले शब्द को सर्वनाम कहते हैं।     
 
यथा :- आप , तू , यह , वह , कुछ , कोई आदि  !

सर्वनाम के छह भेद होते हैं  !

 
1 – पुरुषवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता अपने लिए एवं किसी अन्य के लिए करता है , वह पुरुषवाचक सर्वनाम होता है जैसे -आप कहाँ रहते हैं  !
 
इसके तीन भेद होते हैं  !
 
1 –  उत्तम  पुरुष – मैं  , हम 
2 –  मध्यम पुरुष –  तू ,  तुम , आप 
3 –  अन्य पुरुष –  वह , उसे , उन्हें 
 
2 – निजवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम का प्रयोग कर्ता कारक स्वयं के लिए करता है यथा – मैं अपने आप चला जाऊँगा , खुद अपने – आदि !
 
 
3 –  निश्चयवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम से किसी वस्तु या व्यक्ति अथवा पदार्थ के विषय में ठीक और निश्चित ज्ञान हो , 
      जैसे – यह मेज है !
 
4 – अनिश्चयवाचक सर्वनाम – वह सर्वनाम ,जो किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध नहीं कराए ,
     जैसे – कुछ काम करो आदि !
 
5 – प्रश्नवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न करने के लिए किया जाता है 
 
     जैसे – आपने क्या खाया है ?
 
6 – सम्बन्धवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम से एक शब्द या वाक्य का दूसरे शब्द या वाक्य से सम्बन्ध जाना जाता है 
 
     जैसे – जो करेगा सो भरेगा , जो जागेगा सो पावेगा , जो सोवेगा सो खोवेगा !                               

Loading

Sangya (Noun) (संज्ञा)

संज्ञा की परिभाषा  – संज्ञा को ‘नाम‘ भी  कहा जाता है . किसी प्राणी , वस्तु , स्थान , भाव आदि का ‘नाम’ ही उसकी संज्ञा कही जाती है . 

उदाहरण के लिए निम्नलिखित वाक्य पढ़िए :


राजेश (व्यक्ति) जब रेलगाड़ी (वस्तु) से शिमला (स्थान) गया तो उसे बहुत प्रसन्नता (भाव) हुई.” इस वाक्य में ‘राजेश’, ‘रेलगाड़ी’, ‘शिमला’ और ‘प्रसन्नता’ सभी संज्ञा के उदाहरण हैं. 

संज्ञा तीन प्रकार की होती है.
 
१. व्यक्तिवाचक संज्ञा – जो किसी व्यक्ति, स्थान या वस्तु का बोध कराती है, यथा – सीता, युमना, आगरा. 

२. जातिवाचक संज्ञा  – जो संज्ञा किसी जाति का बोध कराती है, जातिवाचक संज्ञा कहलाती है.  यथा -नदी , पर्वत. 

 
३. भाववाचक संज्ञा  – किसी भाव , गुण, दशा आदि का बोध कराने वाले शब्द भाववाचक संज्ञा होते  है, यथा -मिठास , कालिमा.

Loading