Paksh – पक्ष :
क्रिया के जिस रूप से क्रिया प्रक्रिया अर्थात क्रिया व्यापार का बोध होता है ,उसे क्रिया का पक्ष कहते हैं ! यह क्रिया- व्यापार दो दृष्टियों से देखा जा सकता है ! पहली दृष्टि से हम देखते हैं कि क्रिया की प्रक्रिया आरंभ होने वाली है अथवा आरंभ हो चुकी है ,अथवा वर्तमान में चालू है या हो चुकी है ! दूसरी दृष्टि में क्रिया -प्रक्रिया को एक इकाई के रूप में देखते हैं ! दोनों दृष्टियों के प्रमुख पक्ष उदाहरण सहित इस प्रकार हैं –
1 . (क ) आरंभदयोतक पक्ष -इस पक्ष में क्रिया के आरंभ होने की स्थिति का बोध होता है ,
जैसे – अब मोहन खेलने लगा है !
(ख ) सातप्यबोधक पक्ष – इससे क्रिया की प्रक्रिया के चालू रहने का बोध होता है ,जैसे –
गीता कितना अच्छा गा रही है !
(ग ) प्रगतिदयोतक पक्ष – इससे क्रिया की निरंतर प्रगति का बोध होता है ,जैसे –
भीड़ बढ़ती जा रही है !
(घ ) पूर्णतादयोतक पक्ष – इस पक्ष से क्रिया के पूरी तरह समाप्त हो जाने का बोध होता है,
जैसे – वह अब तक काफी खेल चूका है !
2. (क ) नित्यतादयोतक पक्ष – इस पक्ष से क्रिया के नित्य अर्थात सदा बने रहने का बोध होता
है , इसका आदि -अंत नहीं होता , जैसे – पृथ्वी गोल है !, सूरज पूर्व में निकलता है !
(ख ) अभ्यासदयोतक पक्ष – यह पक्ष क्रिया के स्वभाववश होने का सूचक है , जैसे –
वह दिन भर मेहनत करता था तब सफल हुआ !