Hindi Sounds (हिंदी ध्वनियाँ)

हिंदी ध्वनियाँ:-

हिंदी की देवनागरी लिपि में कुल 52 वर्ण हैं। यह वर्णमाला इस प्रकार है:

स्वर :- अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ऋ , ए , ऐ , ओ , औ ( कुल = 11)

अनुस्वार:- अं     (कुल  = 1)
विसर्ग:- अ: ( : )  (कुल  = 1)
व्यंजन:- 
कंठ्य :-                                      क , ख, ग, घ, ड़      = 5
तालव्य :-                                   च , छ, ज, झ, ञ     = 5 
मूर्धन्य :-                                    ट , ठ , ड , ढ , ण    = 5
दन्त्य :-                                     त , थ , द , ध , न    = 5
ओष्ठ्य :-                                   प , फ , ब , भ , म   = 5
अन्तस्थ :-                                 य , र , ल , व         = 4
ऊष्म :-                                      श , स , ष , ह        = 4
संयुक्त व्यंजन: –                           क्ष , त्र , ज्ञ , श्र       = 4 
द्विगुण व्यंजन: –                          ड़ , ढ़                    = 2
                                                                   
                                                                     कुल वर्ण: 52
स्वर ध्वनियों के उच्चारण में किसी अन्य ध्वनि  की सहायता नहीं ली जाती। वायु मुख विवर में बिना किसी अवरोध के बाहर निकलती है, किन्तु व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में स्वरों की सहायता ली जाती है।
व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में भीतर से आने वाली वायु मुख विवर में कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बाधित होती है। 

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Hindi Words (शब्द)

शब्द :- भाषा की न्यूनतम इकाई वाक्य है और वाक्य की न्यूनतम इकाई शब्द है .

शब्द समूह :- प्रत्येक भाषा का अपना शब्द समूह होता है। इन शब्दों का प्रयोग भाषा के बोलने एवं लिखने में किया जाता है। 

सामान्यत: किसी भी भाषा के चार प्रकार के शब्द होते हैं:

1. तत्सम शब्द:- हिंदी में जो शब्द संस्कृत से ज्यों के त्यों ग्रहण कर लिए गए हैं तथा जिनमें कोई ध्वनि परिवर्तन नहीं हुआ है, तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे राजा  ,बालक, लता आदि।
2. तद्भव  शब्द:- तद्भव का शाब्दिक अर्थ है तत + भव अर्थात उससे उत्पन्न। हिंदी में प्रयुक्त वह शब्दावली जो अनेक ध्वनि परिवर्तनों से गुज़रती हुई हिंदी में आई है, तद्भव शब्दावली है। जैसे आग, ऊँट, घोडा आदि।
उदाहरण: 
संस्कृत शब्द                                    तद्भव शब्द 
अग्नि                                                आग
उष्ट्र                                                     ऊँट
घोटक                                                घोड़ा
3. देशज शब्द:- ध्वन्यात्मक अनुकरण पर गढ़े  हुए वे शब्द जिनकी व्युत्पत्ति किसी तत्सम शब्द से नहीं होती, इस वर्ग में आते हैं। हिंदी में प्रयुक्त कुछ देशज शब्द भोंपू , तेंदुआ, थोथा आदि।
4. विदेशी शब्द:- दूसरी भाषाओं से आये हुए शब्द विदेशी शब्द कहे जाते हैं। हिंदी में विदेशी शब्द दो प्रकार के हैं:
– मुस्लिम शासन के प्रभाव से आये हुए
– अरबी फारसी शब्द
– ब्रिटिश शासन के प्रभाव से आये हुए अंग्रेजी शब्द
हिंदी भाषा में लगभग 2500 अरबी शब्द, 3500 फारसी शब्द और 3000 अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त हो रहे हैं।
उदाहरण:
आदत, इनाम, नशा, अदा, अगर, पाजी, तोप, तमगा , सराय, अफसर, कलेक्टर, कोट,  मेयर, मादाम , पिकनिक , सूप आदि।

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Padbandh (Phrases) (पदबंध)

पदबंध – जब एक से अधिक पद मिलकर एक व्याकरणिक इकाई का काम करते हैं , तब उस बंधी हुई इकाई को पदबंध कहते हैं ! जैसे – सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा जीत गया !


पदबंध के पाँच भेद होते हैं – 
1- संज्ञा पदबंध – जब एक से अधिक पद मिलकर संज्ञा का काम करें ,तो उस पदबंध को संज्ञा पदबंध कहते हैं ! संज्ञा पदबंध के शीर्ष में संज्ञा पद होता है , अन्य सभी पद उस पर आश्रित होते हैं ! जैसे – 
 
   दीवार के पीछे खड़ा पेड़ गिर गया ।
 
इस वाक्य में रेखांकित शब्द संज्ञा पदबंध हैं !
 
2- सर्वनाम पदबंध – जब एक से अधिक पद एक साथ जुड़कर सर्वनाम का कार्य करें तो उसे सर्वनाम पदबंध कहते  हैं ! इसके शीर्ष में सर्वनाम पद होता है ! जैसे –
 
    भाग्य की मारी तुम अब कहाँ जाओगी  ।
3- विशेषण पदबंध – जब एक से अधिक पद मिलकर किसी संज्ञा की विशेषता प्रकट करें , उन्हें विशेषण पदबंध  कहते हैं ! इसके शीर्ष में विशेषण होता है ! अन्य पद उस विशेषण पर आश्रित होते हैं ! इसमें प्रमुखतया प्रविशेषण लगता है ! जैसे – 
 
    मुझे चार किलो पिसी हुई लाल मिर्च ला दो ।
 
4- क्रिया पदबंध – जब एक से अधिक क्रिया पद मिलकर एक इकाई के रूप में क्रिया का कार्य संपन्न करते हैं , वे क्रिया पदबंध कहलाते हैं ! इस पदबंध के शीर्ष में क्रिया होती है ! 
    जैसे – 
             वह पढ़कर सो गया है
 
 
5- क्रियाविशेषण पदबंध – जो पदबंध क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं , उन्हें क्रियाविशेषण पदबंध कहते हैं ! इसमें क्रियाविशेषण शीर्ष पर होता है और प्राय: प्रविशेषण आश्रित पद होते हैं ! जैसे – 
 
    मैं बहुत तेजी से दौड़कर गया ।

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Pratyya (Suffixes) (प्रत्यय)

प्रत्यय – प्रत्यय वह शब्दांश है , जिसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता और जो किसी शब्द के पीछे लगकर उसके अर्थ में विशिष्टता या परिवर्तन ला  देते है ! शब्दों के पश्चात जो अक्षर या अक्षर समूह लगाया जाता है उसे प्रत्यय कहते है !

1- कृत प्रत्यय – 

 
1. अन – मनन , चलन 
 
2. आ – लिखा , भूला 
 
3. आव – बहाव , कटाव 
 
4. इयल – मरियल , अड़ियल 
 
5. ई – बोली , हँसी 
 
6. उक – इच्छुक, भिक्षुक 
 
7. कर – जाकर , गिनकर 
 
8. औती – मनौती , फिरौती 
 
9. आवना – डरावना , सुहावना 
 
10. वाई – सुनवाई , कटवाई 
 
2- तद्धित प्रत्यय – 
 
1. ईन – ग्रामीण , कुलीन 
 
2. त: – अत: , स्वत:
 
3. आई – पण्डिताई , ठकुराई 
 
4. क – चमक , धमक 
 
5. इल – फेनिल , जटिल 
 
6. सा – ऐसा , वैसा 
 
7. ऐरा – बहुतेरा , सवेरा 
 
8. वान – धनवान , गुणवान 
 
9. ल – शीतल , श्यामल 
 
10. मात्र – लेशमात्र , रंचमात्र 

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Upsarg (Prefixes) (उपसर्ग)

उपसर्ग – वे शब्दांश है जो किसी शब्द से पूर्व लगकर उस शब्द का अर्थ बदल देते है उन्हें उपसर्ग कहते हैं ! जैसे – 

1- संस्कृत उपसर्ग
 
( उपसर्ग )                  ( उपसर्ग से निर्मित शब्द ) 
 
1. अति                        अतिशय , अत्याचार , अतिसार 
 
2. आ                          आजीवन , आकार , आजीविका  
 
3. परि                         परिमाप , परिचय , परिमाण 
 
4. नि                          निपुण , निगम , निबन्ध 
 
5. उप                          उपकार , उपमान , उपयोग 
 
2- हिन्दी के उपसर्ग 
 
   ( उपसर्ग )                    ( उपसर्ग से निर्मित शब्द )
 
1. अ                                अचेत , अमर , अशान्त 
 
2. अन                              अनमोल , अनजान , अनाचार 
 
3. भर                               भरसक , भरमार , भरपेट 
 
4. दु                                 दुबला , दुगना , दुसह 
 
5. उन                               उनासी , उनतीस , उनचास 
 
3- अरबी – फारसी के उपसर्ग 
 
  ( उपसर्ग )            (अर्थ )                 ( नवीन शब्द )
 
1. अल                 अलमस्त               अलबत्ता , अलबेला 
 
2. बद                   हीनता                  बदतमीज , बदबू 
 
3. कम                  अल्प                    कमजोर, कमसिन 
 
4. ब                     अनुसार                 बनाम , बदौलत 
 
5. हम                   साथ                     हमराज , हमसफर 
 
4- अंग्रेजी के उपसर्ग 
 
   ( उपसर्ग )               ( उपसर्ग से निर्मित शब्द )
 
1. हाफ                         हाफ पेण्ट , हाफ बाडी 
 
2. सब                          सब -पोस्टमास्टर , सब -इन्सपेक्टर 
 
3. चीफ                         चीफ मिनिस्टर 
 
4. जनरल                      जनरल मैनेजर 
 
5. हैड                           हैड मुंशी , हैड पंडित 
 
5- उपसर्ग की भाँति प्रयुक्त होने वाले अन्य अव्यय 
 
1. का / कु –  कापुरुष , कुपुत्र 
 
2. चिर –  चिरकाल , चिरायु 
 
3. सह –  सहचर , सहकर्मी 
 
4. अ / अन –  अनीति , अधर्म , अनन्त 
 
5. अन्तर –  अन्तर्नाद , अन्तर्ध्यान 

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Kaal (Tenses) (काल)

काल – क्रिया के करने या होने के समय को काल कहते हैं काल के तीन भेद हैं –

1- भूतकाल – ‘ भूत का अर्थ है – बीता हुआ । क्रिया के जिस रूप से यह पता चले कि क्रिया का व्यापार पहले समाप्त हो चुका है , वह भूतकाल कहलाता है ; जैसे – 
    सीता ने खाना पकाया । इस वाक्य से क्रिया के समाप्त होने बोध होता है ।   अत: यहां भूतकाल क्रिया का प्रयोग हुआ है !
 
2- वर्तमान काल – वर्तमान का अर्थ है – उपस्थित अर्थात जिस क्रिया से इस बात की सूचना मिले कि क्रिया का व्यापार अभी भी चल रहा है , समाप्त नहीं हुआ , उसे वर्तमान काल कहते हैं ; जैसे – मोहन गाता है
 
3- भविष्यत काल – भविष्यत का अर्थ है – आने वाला समय । अत: क्रिया के जिस रूप से भविष्यत में क्रिया होने का बोध हो , उसे भविष्यत काल की क्रिया कहते हैं;
    जैसे – सीता कल दिल्ली जाएगी ।  ( गा , गे , गी  भविष्यत काल के परिचायक चिन्ह हैं !)

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Alankaar (Figure of Speech) (अलंकार)

अलंकार –  ” काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व अलंकार कहे जाते हैं ! “


अलंकार के तीन भेद हैं – 

 
1. शब्दालंकार –  ये शब्द पर आधारित होते हैं ! प्रमुख शब्दालंकार हैं –  अनुप्रास , यमक , शलेष , पुनरुक्ति , वक्रोक्ति  आदि !
 
2. अर्थालंकार –  ये अर्थ पर आधारित होते हैं !  प्रमुख अर्थालंकार हैं –  उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा, प्रतीप , व्यतिरेक , विभावना , विशेषोक्ति ,अर्थान्तरन्यास , उल्लेख , दृष्टान्त, विरोधाभास , भ्रांतिमान  आदि !
 
3.उभयालंकार– उभयालंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित रहकर दोनों को चमत्कृत करते हैं!
1- उपमा – जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है   
     जैसे – 
              हरिपद कोमल कमल से  ।
 
हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल ( उपमान ) से कोमलता के कारण की गई ! अत: उपमा अलंकार है !
 
2-  रूपक – जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाता है ! जैसे –
 
                   अम्बर पनघट में डुबो रही ताराघट उषा नागरी  ।
 
आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े डुबो रही है ! यहाँ आकाश पर पनघट का , उषा पर स्त्री का और तारा पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है !
 
3- उत्प्रेक्षा – उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ! 
     जैसे – 
                मुख मानो चन्द्रमा है
 
यहाँ मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है ! यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है !
इस अलंकार की पहचान मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों से होती है !
 
4- यमक – जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँ यमक अलंकार होता है ! जैसे –
 
                      सजना है मुझे सजना के लिए  ।
 
यहाँ पहले सजना का अर्थ है – श्रृंगार करना और दूसरे सजना का अर्थ – नायक शब्द दो बार प्रयुक्त है ,अर्थ अलग -अलग हैं ! अत: यमक अलंकार है !
 
5- शलेष – जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो , किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष अलंकार है ! जैसे –
 
              रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून  ।
              पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून  ।।
 
यहाँ पानी के तीन अर्थ हैं – कान्ति , आत्म – सम्मान  और जल  ! अत: शलेष अलंकार है , क्योंकि पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा उसके अर्थ तीन हैं !
 
6- विभावना – जहां कारण के अभाव में भी कार्य हो रहा हो , वहां विभावना अलंकार है !जैसे –
 
                        बिनु पग चलै सुनै बिनु काना
 
वह ( भगवान ) बिना पैरों  के चलता है और बिना कानों के सुनता है ! कारण के अभाव में कार्य होने से यहां विभावना अलंकार है !
 
7- अनुप्रास –  जहां किसी  वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति  हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है ! जैसे – 
 
                    भूरी -भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया  । 
 
‘ भ ‘ की आवृत्ति  अनेक बार होने से यहां अनुप्रास अलंकार है !
 
8- भ्रान्तिमान – उपमेय में उपमान की भ्रान्ति होने से और तदनुरूप क्रिया होने से भ्रान्तिमान अलंकार होता है ! जैसे –
 
नाक का मोती अधर की कान्ति से , बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,  
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है,  सोचता है अन्य शुक यह कौन है ?
 
यहां नाक में तोते का और दन्त  पंक्ति में अनार के दाने का भ्रम हुआ है , यहां भ्रान्तिमान अलंकार है !
 
9- सन्देह – जहां उपमेय के लिए  दिए गए उपमानों में सन्देह बना रहे तथा निशचय न हो सके, वहां सन्देह अलंकार होता है !जैसे –
 
          सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ।
          सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है
 
10- व्यतिरेक – जहां कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई गई हो , वहां व्यतिरेक अलंकार होता है !जैसे –
 
          का सरवरि तेहिं देउं मयंकू । चांद कलंकी वह निकलंकू ।।
 
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूं ? चन्द्रमा में तो कलंक है , जबकि मुख निष्कलंक है !
 
11- असंगति – कारण और कार्य में संगति न होने पर असंगति अलंकार होता है ! जैसे –
 
                      हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै
 
घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं , पर पीड़ा राम को है , अत: असंगति अलंकार है !
 
12- प्रतीप – प्रतीप का अर्थ है उल्टा या विपरीत । यह उपमा अलंकार के विपरीत होता है । क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित , पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई जाती है ! जैसे – 
 
               सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक
 
सीताजी के मुख ( उपमेय )की तुलना बेचारा चन्द्रमा ( उपमान )नहीं कर सकता । उपमेय की श्रेष्टता प्रतिपादित होने से यहां प्रतीप अलंकार है !
 
13- दृष्टान्त – जहां उपमेय , उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है,जैसे-
             बसै बुराई जासु तन ,ताही को सन्मान ।
             भलो भलो कहि छोड़िए ,खोटे ग्रह जप दान ।।
 
यहां पूर्वार्द्ध में उपमेय वाक्य और उत्तरार्द्ध में उपमान वाक्य है ।इनमें ‘ सन्मान होना ‘ और ‘ जपदान करना ‘ ये दो भिन्न -भिन्न धर्म कहे गए हैं । इन दोनों में बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव है । अत: दृष्टान्त अलंकार है ! 
 
14- अर्थान्तरन्यास – जहां सामान्य कथन का विशेष से या विशेष कथन का सामान्य से समर्थन किया जाए , वहां अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है ! जैसे –
 
              जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग ।
              चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग ।।
 
15- विरोधाभास – जहां वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास मालूम पड़े , वहां विरोधाभास अलंकार होता है ! जैसे –
 
              या अनुरागी चित्त की गति समझें नहीं कोइ ।
              ज्यों -ज्यों बूडै स्याम रंग त्यों -त्यों उज्ज्वल होइ ।।
 
यहां स्याम रंग में डूबने पर भी उज्ज्वल होने में विरोध आभासित होता है , परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । अत: विरोधाभास अलंकार है ! 
 
16- मानवीकरण – जहां जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है , वहां मानवीकरण अलंकार है ! जैसे –
 
              फूल हंसे कलियां मुसकाई
 
यहां फूलों का हंसना , कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएं हैं , अत: मानवीकरण अलंकार है!
 
17- अतिशयोक्ति – अतिशयोक्ति का अर्थ है – किसी बात को बढ़ा -चढ़ाकर कहना । जब काव्य में कोई बात बहुत बढ़ा -चढ़ाकर कही जाती है तो वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है !जैसे –
 
                           लहरें व्योम चूमती उठतीं
 
यहां लहरों को आकाश चूमता हुआ दिखाकर अतिशयोक्ति का विधान किया गया है !
 
18- वक्रोक्ति – जहां किसी वाक्य में वक्ता के आशय से भिन्न अर्थ की कल्पना की जाती है , वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है !    
    – इसके दो भेद होते हैं – (1 ) काकु वक्रोक्ति   (2) शलेष वक्रोक्ति  ।   
 
1- काकु वक्रोक्ति – वहां होता है जहां वक्ता के कथन का कण्ठ ध्वनि के कारण श्रोता भिन्न अर्थ लगाता है । जैसे –
 
              मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू
 
2- शलेष वक्रोक्ति – जहां शलेष के द्वारा वक्ता के कथन का भिन्न अर्थ लिया जाता है ! जैसे –
 
              को तुम हौ इत आये कहां घनस्याम हौ तौ कितहूं बरसो ।
              चितचोर कहावत हैं हम तौ तहां जाहुं जहां धन है सरसों ।।
 
19- अन्योक्ति – अन्योक्ति का अर्थ है अन्य के प्रति कही गई उक्ति । इस अलंकार में अप्रस्तुत के  माध्यम से प्रस्तुत का वर्णन किया जाता है ! जैसे –
 
             नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल ।
             अली कली ही सौं बिध्यौं आगे कौन हवाल  ।।
 
यहां भ्रमर और कली का प्रसंग अप्रस्तुत विधान के रूप में है जिसके माध्यम से राजा जयसिंह को सचेत किया गया है , अत: अन्योक्ति अलंकार है !                                                                                  
 
    
 

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Samaas (Compound) (समास)

समास – 

दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से नए शब्द बनाने की क्रिया को समास कहते हैं !
सामासिक पद को विखण्डित करने की क्रिया को विग्रह कहते हैं !

समास के छ: भेद हैं –

 
1- अव्ययीभाव समास – जिस समास में पहला पद प्रधान होता है तथा समस्त पद अव्यय का काम करता है , उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं !जैसे – 
      ( सामासिक पद )                     ( विग्रह )
 
1.      यथावधि                          अवधि के अनुसार    
 
2.      आजन्म                           जन्म पर्यन्त 
 
3.      प्रतिदिन                           दिन -दिन 
 
4.      यथाक्रम                           क्रम के अनुसार 
 
5.      भरपेट                              पेट भरकर 
 
2- तत्पुरुष समास –  इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा विभक्ति चिन्हों का लोप हो जाता है !  तत्पुरुष समास के छ: उपभेद विभक्तियों के आधार पर किए गए हैं –
 
1. कर्म तत्पुरुष 
 
2. करण तत्पुरुष
 
3. सम्प्रदान तत्पुरुष 
 
4. अपादान तत्पुरुष 
 
5. सम्बन्ध तत्पुरुष 
 
6. अधिकरण तत्पुरुष 
 
– उदाहरण इस प्रकार हैं – 
 
        ( सामासिक पद )                   ( विग्रह )                           ( समास )
 
1. कोशकार                          कोश को करने वाला               कर्म तत्पुरुष 
 
2. मदमाता                          मद से माता                         करण तत्पुरुष 
 
3. मार्गव्यय                    मार्ग के लिए व्यय                 सम्प्रदान तत्पुरुष 
 
4. भयभीत                       भय से भीत                         अपादान तत्पुरुष 
 
5. दीनानाथ                     दीनों के नाथ                        सम्बन्ध तत्पुरुष 
 
6. आपबीती                 अपने पर बीती                      अधिकरण तत्पुरुष                           
3- कर्मधारय समास –  जिस समास के दोनों पदों में विशेष्य – विशेषण या उपमेय – उपमान सम्बन्ध हो तथा दोनों पदों में एक ही कारक की विभक्ति आये उसे कर्मधारय समास कहते हैं !  जैसे :-

       ( सामासिक पद )                 ( विग्रह )
1.      नीलकमल                     नीला है जो कमल
2.      पीताम्बर                       पीत है जो अम्बर
3.      भलामानस                    भला है जो मानस
4.      गुरुदेव                           गुरु रूपी देव
5.      लौहपुरुष                       लौह के समान ( कठोर एवं शक्तिशाली  ) पुरुष
 
4-  बहुब्रीहि समास –  अन्य पद प्रधान समास को बहुब्रीहि समास कहते हैं !इसमें दोनों पद किसी अन्य अर्थ को व्यक्त करते हैं और वे किसी अन्य संज्ञा के विशेषण की भांति कार्य करते हैं ! जैसे –
       ( सामासिक पद )               ( विग्रह )
1.      दशानन                        दश हैं आनन जिसके  ( रावण )
2.      पंचानन                        पांच हैं मुख जिनके    ( शंकर जी )
3.      गिरिधर                        गिरि को धारण करने वाले   ( श्री कृष्ण )
4.      चतुर्भुज                        चार हैं भुजायें जिनके  ( विष्णु )
5.      गजानन                       गज के समान मुख वाले  ( गणेश जी )
5-  द्विगु समास –  इस समास का पहला पद संख्यावाचक होता है और सम्पूर्ण पद समूह का बोध कराता है ! जैसे –       
         ( सामासिक पद )                  ( विग्रह )
1.        पंचवटी                           पांच वट वृक्षों का समूह
2.        चौराहा                            चार रास्तों का समाहार
3.        दुसूती                             दो सूतों का समूह
4.        पंचतत्व                          पांच तत्वों का समूह
5.        त्रिवेणी                           तीन नदियों  ( गंगा , यमुना , सरस्वती  ) का समाहार
 
6-  द्वन्द्व समास –  इस समास में दो पद होते हैं तथा दोनों पदों की प्रधानता होती है ! इनका विग्रह करने के लिए  ( और , एवं , तथा , या , अथवा ) शब्दों का प्रयोग किया जाता है !
     जैसे –
          ( सामासिक पद )                      ( विग्रह )
1.         हानि – लाभ                        हानि या लाभ
2.         नर – नारी                           नर और नारी
3.         लेन – देन                           लेना और देना
4.         भला – बुरा                          भला या बुरा
5.         हरिशंकर                            विष्णु और शंकर

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Dhaatu (Stem) (धातु)

धातु – क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं !जैसे – पढ़ , लिख , आ ,खा , जा , सो , हंस ! ‘पढ़‘ धातु  से अनेक क्रिया रूप बनते हैं ! जैसे – पढ़ा , पढ़ता है , पढ़ना , पढ़ा था , पढ़िए ! इनमें पढ़ एक ऐसा अंश है , जो सभी रूपों में मिल रहा है ! इस  समान रूप से मिलने वाले अंश को धातु या क्रिया धातु कहते हैं !

 

धातु के भेद इस प्रकार हैं – 
 
1. सामान्य ( मूल ) धातु –  सामान्य , मूल या रूढ़ क्रिया धातुएं रूढ़ शब्द के रूप में प्रचलित हैं! यौगिक अथवा व्युत्पन्न न होने के कारण ही इन्हें सामान्य या सरल धातुएं भी कहते हैं ;
    जैसे – सुनना , खेलना , लिखना , जाना , खाना आदि !
 
2. व्युत्पन्न धातु –  जो धातुएं किसी मूल धातु में प्रत्यय लगा कर अथवा मूल धातु को किसी अन्य प्रकार से बदलकर बनाई जाती हैं , उन्हें व्युत्पन्न धातुएं कहते हैं ! जैसे –
 
    मूल रूप      व्युत्पन्न धातु ( प्रेरणार्थक )              व्युत्पन्न ( अकर्मक )
 
1.  काटना              कटवाना                                             कटना 
 
2.  खाना                 खिलाना                                        खिलवाना                         
3.  खोलना             खुलवाना                                             खुलना 
 
–  मूल धातुएं अकर्मक होती हैं , या सकर्मक ! मूल अकर्मक धातुओं से प्रेरणार्थक अथवा  सकर्मक धातुएं व्युत्पन्न होती हैं !
 
3.  नाम धातु –  संज्ञा , सर्वनाम और विशेषण शब्दों के पीछे प्रत्यय लगाकर जो क्रिया धातुएं बनती हैं , उन्हें नाम धातु क्रिया कहते हैं , जैसे –
 
–  संज्ञा शब्दों सेलाज से लजाना , बात से बतियाना !  हिनहिन से हिनहिनाना ,  
–  विशेषण शब्दों से –  गर्म से गर्माना , मोटा से मुटाना  !
–  सर्वनाम से –    अपना से अपनाना  !
 
4.  मिश्र धातु –  जिन संज्ञा , विशेषण और क्रिया विशेषण शब्दों के बाद  ‘ करना ‘  यह होना जैसे क्रिया पदों के प्रयोग से जो नई क्रिया धातुएं बनती हैं , उन्हें मिश्र धातुएं कहते हैं 
 
1.  होना या करना  – काम करना , काम होना !
 
2.  देना –  धन देना , उधार देना !
 
3.  खाना  –  मार खाना , हवा खाना !
 
4.  मारना –  गोता मारना , डींग मारना !
 
5.  लेना –  जान लेना , खा लेना !
 
6.  जाना –  पी जाना , सो जाना !
 
7.  आना –  याद आना , नजर आना !
 
5-  अनुकरणात्मक धातु –  जो धातुएं किसी ध्वनि के अनुकरण पर बनाई जाती हैं , अनुकरणात्मक धातुएं कहते हैं ! जैसे – 
     टनटन – टनटनाना , चटकना , पटकना , खटकना धातुएं भी अनुकरणात्मक धातुओं के अंतर्गत आती हैं !                         

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Sandhi (Seam) ( संधि)

संधि :- दो पदों में संयोजन होने पर जब दो वर्ण पास -पास आते हैं , तब उनमें जो विकार सहित मेल होता है , उसे संधि कहते हैं !


संधि तीन प्रकार की होती हैं :-
 
1. स्वर संधि –  दो स्वरों के पास -पास आने पर उनमें जो रूपान्तरण होता है , उसे स्वर कहते है !  स्वर संधि के पांच भेद हैं :-
 
1. दीर्घ स्वर संधि 
 
2. गुण स्वर संधि 
 
3. यण स्वर संधि 
 
4. वृद्धि स्वर संधि 
 
5. अयादि स्वर संधि 
 
1-  दीर्घ स्वर संधि–    जब दो सवर्णी स्वर पास -पास आते हैं , तो मिलकर दीर्घ हो जाते हैं !
     जैसे –
 
1. अ+अ = आ          भाव +अर्थ = भावार्थ 
 
2. इ +ई =  ई           गिरि +ईश  = गिरीश 
 
3. उ +उ = ऊ           अनु +उदित = अनूदित 
 
4. ऊ +उ  =ऊ          वधू +उत्सव =वधूत्सव 
 
5. आ +आ =आ        विद्या +आलय = विधालय   
 
2-   गुण संधि :-  अ तथा आ के बाद इ , ई , उ , ऊ तथा ऋ आने पर क्रमश: ए , ओ तथा अनतस्थ  र होता है इस विकार को गुण संधि कहते है !
      जैसे :-
 
1. अ +इ =ए           देव +इन्द्र = देवेन्द्र 
 
2. अ +ऊ =ओ         जल +ऊर्मि = जलोर्मि 
 
3. अ +ई =ए            नर +ईश = नरेश 
 
4. आ +इ =ए           महा +इन्द्र = महेन्द्र 
 
5. आ +उ =ओ          नयन +उत्सव = नयनोत्सव 
 
3- यण स्वर संधि :-   यदि इ , ई , उ , ऊ ,और ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए तो इनका परिवर्तन क्रमश:  य , व् और  र में हो जाता है ! जैसे –  
 
1. इ का य = इति +आदि = इत्यादि 
 
2. ई का य = देवी +आवाहन = देव्यावाहन 
 
3. उ का व = सु +आगत = स्वागत 
 
4. ऊ का व = वधू +आगमन = वध्वागमन 
 
5. ऋ का र = पितृ +आदेश = पित्रादेश 
 
3-  वृद्धि स्वर संधि :-  यदि  अ  अथवा  आ के बाद ए अथवा ऐ हो तो दोनों को मिलाकर ऐ और यदि ओ  अथवा औ हो तो दोनों को मिलाकर औ हो जाता है ! जैसे  – 
 
1. अ +ए =ऐ        एक +एक =  एकैक 
 
2. अ +ऐ =ऐ        मत +ऐक्य = मतैक्य 
 
3. अ +औ=औ      परम +औषध = परमौषध 
 
4. आ +औ =औ    महा +औषध = महौषध 
 
5. आ +ओ =औ     महा +ओघ = महौघ 
 
5- अयादि स्वर संधि :-  यदि ए , ऐ और ओ , औ के पशचात इन्हें छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो इनका परिवर्तन क्रमश: अय , आय , अव , आव में हो जाता है जैसे – 
 
1. ए का अय          ने +अन = नयन 
 
2. ऐ का आय         नै +अक = नायक 
 
3. ओ का अव         पो +अन = पवन 
 
4. औ का आव        पौ +अन = पावन 
 
5. का परिवर्तन में =   श्रो +अन = श्रवण 
 
2- व्यंजन संधि :-  व्यंजन के साथ स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उस व्यंजन में जो रुपान्तरण होता है , उसे व्यंजन संधि कहते हैं जैसे :- 
 
1. प्रति +छवि = प्रतिच्छवि 
 
2. दिक् +अन्त = दिगन्त 
 
3. दिक् +गज = दिग्गज 
 
4. अनु +छेद =अनुच्छेद 
 
5. अच +अन्त = अजन्त  
 
3- विसर्ग संधि : –  विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो विकार होता है ,  उसे विसर्ग संधि कहते हैं ! जैसे –
 
1. मन: +रथ = मनोरथ 
 
2. यश: +अभिलाषा = यशोभिलाषा 
 
3. अध: +गति = अधोगति 
 
4. नि: +छल  = निश्छल 
 
5. दु: +गम = दुर्गम 

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