रस – काव्य को पढ़ते या सुनते समय हमें जिस आनन्द की अनुभूति होती है ,उसे ही रस कहा जाता है ! रसों की संख्या नौ मानी गई हैं !
रस का नाम स्थायीभाव
( इनके अतिरिक्त दो रसों की चर्चा और होती है )-
रस – काव्य को पढ़ते या सुनते समय हमें जिस आनन्द की अनुभूति होती है ,उसे ही रस कहा जाता है ! रसों की संख्या नौ मानी गई हैं !
रस का नाम स्थायीभाव
अज – दशरथ के पिता ,बकरा ,ब्रह्मा
घोष और अघोष :- ध्वनि की दृष्टि से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वरतन्त्रियाँ झंकृत होती है , उन्हें ‘ घोष ‘ कहते है और जिनमें स्वरतन्त्रियाँ झंकृत नहीं होती उन्हें ‘ अघोष ‘ व्यंजन कहते हैं ! ये घोष – अघोष व्यंजन इस प्रकार हैं –
अल्पप्राण और महाप्राण :- जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से कम श्वास निकले उन्हें ‘अल्पप्राण ‘ कहते हैं ! और जिनके उच्चारण में अधिक श्वास निकले उन्हें ‘ महाप्राण ‘कहते हैं!
ये वर्ण इस प्रकार है –
वाक्य अशुद्धि शोधन = सार्थक एवं पूर्ण विचार व्यक्त करने वाले शब्द समूह को वाक्य कहा जाता है ! प्रत्येक भाषा का मूल ढांचा वाक्यों पर ही आधारित होता है ! इसलिए यह अनिवार्य है कि वाक्य रचना में पद -क्रम और अन्वय का विशेष ध्यान रखा जाए ! इनके प्रति सावधान न रहने से वाक्य रचना में कई प्रकार की भूलें हो जाती हैं !
वाक्य रचना के लिए अभ्यास की परम आवश्यकता होती है ! जैसे –
उच्चारणगत अशुद्धियाँ = बोलने और लिखने में होने वाली अशुद्धियाँ प्राय: दो प्रकार की होती हैं
अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप –
ऐसे शब्द सुनने या उच्चारण करने में समान भले प्रतीत हों ,किन्तु समान होते नहीं हैं , इसलिए उनके अर्थ में भी परस्पर भिन्नता होती है ; जैसे – अवलम्ब और अविलम्ब . दोनों शब्द सुनने में समान लग रहे हैं , किन्तु वास्तव में समान हैं नहीं ,अत: दोनों शब्दों के अर्थ भी पर्याप्त भिन्न हैं , ‘अवलम्ब ‘ का अर्थ है – सहारा , जबकि अविलम्ब का अर्थ है – बिना विलम्ब के अर्थात शीघ्र .
छंद के अंग इस प्रकार है –
Paksh – पक्ष :
1 . (क ) आरंभदयोतक पक्ष -इस पक्ष में क्रिया के आरंभ होने की स्थिति का बोध होता है ,